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क्या JBKSS ने मृतक के परिजनों को दिलाया इंसाफ़, या फिर हुआ बड़ा खेल? समझे पूरी कहानी

बड़ा सवाल आम के लिये अड़े थे क्रांतिकारी, बंद कमरे में वार्ता के बाद गुठली लेने को क्यों हुए राज़ी?

Adityapur:- बीते गुरुवार को आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया के फेज चार और फेज छः स्थित क्रॉस लिमिटेड कंपनी में हृदय गति रुकने से मृत ठेका मजदूर स्वपन कुमार बेहरा और सुरक्षा कर्मी प्रेम सागर महतो के मौत मामले को लेकर जारी गतिरोध शनिवार देर रात त्रिस्तरीय वार्ता के बाद समाप्त हो गया. वार्ता में मृतक के परिजनों को आठ-आठ लाख एकमुश्त मुआवजा के लिए प्रबंधन राजी हुआ जिसके बाद परिजनों ने आंदोलन समाप्त कर दिया. उसके बाद दोनों के परिजन मृतकों के शवों को लेकर चले गए.

क्या वाकई में JBKSS ने परिजनों को दिलाया इंसाफ़?

झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) के क्रांतिकारियों ने मृतकों के आश्रितों को मुआवजा दिलाने में कड़ा संघर्ष किया। उनके आंदोलन की वजह से क्रॉस प्रबंधन मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने पर मजबूर हुआ। जबकि मृतक न तो कंपनी के स्थायी मजदूर थे न यहां के स्थानीय थे।
पूरे मामले को समझे तो शनिवार की शाम करीब चार बजे जेबीकेएसएस नेता तरुण महतो, सृजन हाईबुरु, राजा कालिंदी, प्रदीप कुमार महतो, बिंदेश्वर महतो, तपन महतो आदि के नेतृत्व में मृतकों के परिजन शव के साथ कंपनी गेट पर 25 लाख मुआवजा, नौकरी और बच्चे की इंटर तक पढ़ाई की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए। प्रबंधन इसपर राजी नहीं हुआ। प्रबंधन की ओर से जो प्रस्ताव दिए गए यदि उसे जेबीकेएसएस के क्रांतिकारी मान लेते तो शायद मृतकों के परिजनों को वास्तविक इंसाफ मिल जाता।
प्रबंधन की ओर से तीन दौर के वार्ता के दौरान अंत में जो निर्णय निकलकर सामने आया उसके तहत प्रबंधन मृतकों के आश्रित को

पांच- पांच लाख रुपए
ढाई वर्ष तक बगैर काम के आश्रित को वेतन
नौकरी एवं मृतकों के बच्चों के इंटर तक की पढ़ाई का खर्च

उठाने पर राजी हुआ, जिसे क्रांतिकारियों ने नकार दिया और आंदोलन जारी रखा। क्रांतिकारी 15- 15 लाख, नौकरी और बच्चों के इंटर तक की पढ़ाई की मांग पर अड़े रहे। जब प्रशासन ने सख्ती दिखाई तब बंद कमरे में हुई त्रिपक्षीय वार्ता के बाद एक मुफ्त 8-8 लाख रुपए देने पर सहमति बनी और आंदोलन समाप्त हो गया।

आख़िर बंद कमरे में क्या बात हुई जिस पर उठ रहा सवाल!

पैसे आज हैं कल नहीं, कल जब पैसे समाप्त हो जाएंगे तब मृतकों के आश्रितों का कौन सहारा बनेगा। आम के सौदे के लिये JBKSS अड़ा हुआ था लेकिन गुठली दिलाकर क्यों क्रांतिकारियों ने इस फैसले पर परिजनों की सहमति बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया।
सवाल ये उठता है कि परिजनों को समझाने की जिम्मेदारी किसकी थी, और इस घाटे की सौदे पर किसने परिवारी की हामी ली? आख़िर विदित हो कि झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के क्रांतिकारी मजदूरों से जुड़े मुद्दों पर अपनी आवाज मुखर जरूर करते हैं, मगर उनका आंदोलन कहीं ना कहीं रास्ते से भटक जाता है।

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