Caste Census impact on Upcoming elections- आगामी चुनाव के लिए क्या जातीय जनगणना साबित होगी चंपई सरकार का बड़ा दाव
रिपोर्ट – Dashrath Pradhan(मुख्य संपादक)
Ranchi :- झारखंड में भी बिहार की तर्ज पर जाति जनगणना होने जा रही है, इसे लेकर सीएम की कुर्सी सँभालते ही चंपई सोरेन ने एलान कर दिया है साथ ही कार्मिक विभाग को इसके सर्वेक्षण के लिए जिम्मेदारी सौंप दी है।
बिहार में जातीय जनगणना के बाद सोशल मीडिया के एक्स पोस्ट पर मुख्यमंत्री चंपई इसे लेकर बेकरार दिखाई पड़े और लिखा था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी होगी। इस से ये साफ है कि आगामी लोकसभा और इसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में झामुमो इसे कारगर दांव मान रही है।
जातीय जनगणना को किसका मिला समर्थन
शुरुआत से ही जातिय जनगणना के समर्थन में झामुमो के साथ कांग्रेस भी समर्थन करती रही है। राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा के दौरान इसकी वकालत करते कई बार दिखाई पड़े। राजद का उतना जनाधार तो झारखंड में नहीं है, लेकिन, इसकी पक्षधर जरुरी रही है।
वही बात करे भाजपा की तो जातिगत जनगणना पर भाजपा कुछ ज्यादा नहीं बोल रही है। लेकिन, एनडीए में शामिल आजसू गाहे-बगाहे कास्ट सर्वे की मांग करती रही है। देख जाए तो जाति गणना को लेकर दो साल पहले ही राज्य के सभी दलों की सहमति बन गई थी। इसके बाद सर्वदलीय शिष्टमंडल के सदस्यों ने सितंबर 2021 में दिल्ली जाकर इससे संबंधित मांग पत्र गृह मंत्री को सौंपा था और इस पर केन्द्र सरकार से पहल करने की मांग की गई थी।
जातीय जनगणना के पीछे जेएमएम की सोच
जमीन घोटाले के आरोप में जेल में बद हेमंत सोरेन के बाद मंत्री चंपई सोरेन ने मुख्यमंत्री की गद्दी संभाली।
मुश्किलों का दौर से पार्टी ने घबराने की बजाए लड़ने की ठानी और तमाम मुश्किल इम्तहानों से जुझ रहे महागठबंधन आगामी चुनाव को लेकर कोशिशें तेज की हुई है। अगर थोड़ पीछे मुड़कर देखे, तो तत्कालीन हेमंत सरकार के दौरान स्थानीयता और नियोजन नीति बनाने का बिल विधानसभा में पारित कर लिया गया था। लेकिन, अलग-अलग कारणों के चलते अमल में नहीं आ सका।हेमंत सोरेन की सरकार के वक्त 11 नवंबर 2022 को आरक्षण बिल विधानसभा में पास कराया था। लेकिन, राज्यपाल ने कई आपत्तियों के साथ इसे लौटा दिया था. अगर राज्यपाल की मंजूरी मिल जाती तो ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से बढ़कर 27 फीसदी हो जाती।एसटी रिजर्वेशन भी 16 की जगह 28 प्रतिशत और एससी को 10 की बजाए 12 प्रतिशत आरक्षण मिलता. ईडब्लूएस के लिए आरक्षण सीमा 10 फीसदी पहले से ही लागू थी। सभी को मिलाकर देखा जाए तो हेमंत सरकार ने 77 फीसदी आरक्षण का प्रावधान बिल में किया था।
सबसे अहम सवाल क्या जातीय जनगणना साबित होगी JMM के लिए वरदान ?
चार साल हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार चली, लेकिन, लैंड स्कैम के आरोप में उनकी गिरफ्तारी के बाद मुश्किलें खड़ी हो गयी।जेएमएम के साथ ही कांग्रेस में भी अंदर-अंदर किचकिच नजर आयी। सवाल यही है कि अब कुछ महीने के बाद लोकसभा चुनाव का बिगुल बज जाएगा, इसके बाद झारखंड विधानसभा चुनाव भी इसी साल होना है. ऐसी स्थिति में किसी भी कीमत पर पार्टी बेहतर प्रदर्शन करना चाहेगी। कास्ट सर्वे इसी कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।
माना जा रहा है कि, जातिए गणना लोकसभा चुनाव में एक वादे के तौर पर काम करेगा, तो विधानसभा चुनाव में इसका फायदा महागठबंधन सरकार को मिल सकता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा को विधानसभा चुनाव की चिंता कही ज्यादा है, क्योंकि किसी भी कीमत और सूरत में कम सीट जेएमएम नहीं लाना चाहेगी। JMM आज बड़े दल के तौर पर विधानसभा में काबिज है जिसके चलते ही उसका सिक्का चल रहा है। जातिए गणना को ऐसे वक्त एलान किया गया और जैसी तैयारी की जा रही है, इससे तो कही न कही लगता है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस पर काम शुरु हो जाएगा। सर्वे से फायदा ये होगा कि इससे जातियों की गिनती तो हो ही जाएगी। संख्या बल के हिसाब से आरक्षण और दूसरे लाभ भी लोगों की योजना सरकार बना सकेगी।
खैर जातिए गणना से कितना फायदा जेएमएम और उनके सहयोगियों को होगा. ये तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम ही बातायेंगे, लेकिन, सीएम चंपई सोरेन के इस फैसले से तो यहीं लगता है कि आगामी चुनाव के मौसम में सियासत की बिसात पर कॉस्ट सर्वे छाया रहेगा।महागठबंधन इसे एक हथियार के तौर पर भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करेगी और वोटर्स को लुभायेगी।
अब देखना यह दिलचस्प होगा कि जातिए गणना को जनता कैसे लेती है और कितना फायदा झारखंड में मौजूद महागठबंधन सरकार को मिलता है।