NewsTOP VIDEOSVideosओडिशाझारखण्डपश्चिम बंगालबिहार

Rajnagar-Doson-JilJom-2024 आदिवासियों कि महामिलन समरोह मान्यता और परंपरा ᱰᱚᱥᱚᱱ ᱡᱤᱞ ᱡᱚᱢ देखें वीडियो :-

राजनगर के विश्रामपुर में धूमधाम से सम्पन्न हुआ संताल समुदाय का जिल जोम अथवा दोसोन पर्व पांच के अंतराल में होता है दोसोन अथवा जिल जोम नए पुराने रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हैं लोग, होता है महामिलन समारोह, दीवारों को आकर्षक चित्रकारी कर सजाया जाता है.

राजनगर प्रखंड क्षेत्र के विश्रामपुर सहित विभिन्न गावों में संताल समुदाय का दोसोन(दोसमी ) पर्व यानी जिल जोम धूमधाम से सम्पन्न हो हुआ. विश्रामपुर में भव्य व आकर्षक रूप में जिल जोम मनाया गया. जिसमें हजारों की संख्या में लोगों का जमवाड़ा रहा. ज्ञात हो कि संताल समुदाय पांच साल के अंतराल में इस समारोह का आयोजन करते हैं. जिसमें अपने सभी नए पुराने रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है. एक तरह से जिल जोम संताल समुदाय का महामिलन समारोह की तरह होता है. जिसमें हर घर में मेहमानों के लिए विशेष पकवान परोसे जाते है.

मीट मछली तो प्रायः हर घर में बनता है. हर घर मेहमानों से भर जाते है. मेहमान भी रिश्तेदार घर खाली हाथ नहीं जाते हैं, बल्कि अपने साथ चावल दाल व अन्य खाद्यान्न सामग्री लेकर मेहमान घर जाते हैं. इस अवसर पर संताल समुदाय अपनी परम्परिक लोक नृत्य करते हैं. परन्तु आजकल दोसमी त्यौहार को कई गावों में भव्य व आकर्षक रूप में मनाया जा रहा है. आकर्षक साज-सज्जा व डीजे के धुन पर दोसमी पर्व मनाया जा रहा है. संताल समुदाय का एक अलग की संस्कृति है. हर त्यौहार में अपनी दीवारों को आकर्षक सजाया जाता है. दीवारों में आकर्षक चित्रकारी देखने को मिलती है. जिसके लिए महीनों से तैयारी की जाती है.

विश्रामपुर में आयोजित जिल जोम में मेहमान के तौर पर पहुंचे आदिवासी सेंगेल अभियान के झारखंड दिशोम पोनोत सुगनाथ हेंब्रम ने बताया कि आदिवासी समाज प्राकृतिक पूजक हैं. हमारी संस्कृति हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई से अलग है. हम सरना धर्म को मानते हैं. जिल जोम अथवा दोसन उत्सव दो तरह के होते हैं. पहला मारंग दोसन( जाहेर डंगरी) एवं दूसरा हुडिंग दोसन (बोदा दोसन). मारंग यानी बड़ा दोसन प्रत्येक पांच साल के अंतराल में मनाते हैं. जिसमें हमारे जितने भी रिश्तेदार नए हों या पुराने सभी को आमंत्रित हैं और एक साथ जाहेरस्थान में पूजा किया गया लेटो या प्रसाद ग्रहण करते हैं. हर परिवार अपने क्षमता अनुसार अलग से मेहमानों के लिए खान की व्यवस्था करते हैं.

इस दौरान सामूहिक नाच गान होता है. इससे समारे समाज में प्रेम व सद्भाव बना रहता है. वहीं जोनबानी पंचायत की मुखिया नमिता सोरेन ने कहा कि पांच साल में होने वाला दोसन जिसे सरल शब्दों में आजकल जिल जोम बोला जाता है. यह पुराने मेहमानों से मेल मिलाप व परिचय का अच्छा अवसर प्रदान करता है. जाहेरस्थान में पूजा होता है. जिसमें लेटो(खिचड़ी प्रसाद बनता है) जिसे सब मेहमानों के साथ बैठकर खान पान करते हैं. वहीं विश्रामपुर के सेवानिवृत्त भारतीय जवान सुब्रम हेंब्रम ने कहा कि दोसन अथवा जिल जोम हमें अपने भूले बिसरे मेहमानों से मिलने का मौका देता है. दोसोन तीन दिनों का होता है.

पहला दिन दोसोन, दूसरा दिन दोसमी और तीसरा दिन खान पान का होता है. जाहेस्थान में ईष्ट देवी देवता का पूजा होता है और  बलि दिया जाता है. फिर मेहमानों के साथ खान पान होता है. उन्होंने चिंता जाहिर करते कहा कि आजकल पारंपरिक वाद्य यंत्रों की जगह डीजे के धुन पर युवा पीढ़ी नाच गान कर रहे हैं, जिससे हमारे संस्कृतिक वाद्य यंत्र लुप्त होते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है.

Share this news

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *