ईचागढ़ में सरकारी कार्यालयों के नामपट्टों पर ओल चिकी लिपि शामिल करने की मांग
ईचागढ़ : ईचागढ़ प्रखंड में संथाली भाषा और उसकी लिपि ओल चिकी को सम्मान देने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है। संथाल समुदाय के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को प्रखंड विकास कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपा। हालांकि बीडीओ की अनुपस्थिति में उच्च श्रेणी क्लर्क को यह ज्ञापन सौंपा गया,जिन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही सरकारी कार्यालयों के नामपट्टों पर ओल चिकी लिपि में भी अंकन किया जाएगा। ज्ञापन में कहा गया कि ईचागढ़ प्रखंड सरायकेला-खरसावां जिले के अंतर्गत आता है,जो झारखंड के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल है। इस क्षेत्र में संथाल समुदाय की आबादी काफी अधिक है, और उनकी भाषा संथाली की अपनी स्वतंत्र लिपि ओल चिकी है, जिसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त है। झारखंड सरकार द्वारा पूर्व में जारी आदेशों के अनुसार संथाल बहुल क्षेत्रों में सरकारी कार्यालयों और गांवों के नामपट्टों पर ओल चिकी लिपि में भी अंकन किया जाना चाहिए।आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के लोगों ने बताया कि इससे पहले भी ईचागढ़ के तत्कालीन बीडीओ किकू महतो को ज्ञापन देकर इस संबंध में मांग की गई थी,जिसके बाद कुछ पहल हुई थी। हालांकि यह कार्य पूर्ण नहीं हो सका। अब एक बार फिर से संथाली भाषियों के अधिकारों और उनकी भाषा को सम्मान देने के उद्देश्य से ज्ञापन सौंपा गया है। प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकारी कार्यालयों, अंचल कार्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, विद्यालय, थाना, पंचायत भवन और आंगनबाड़ी केंद्रों सहित सभी सरकारी संस्थानों के नामपट्टों पर ओल चिकी लिपि में भी नाम लिखा जाना चाहिए।
मुख्यरूप से माझी बाबा घनेश्याम मुर्मु, धनेश्वर मुर्मू, कारण किस्कू, बुद्धेश्वर किस्कू, रोड़े बेसरा, महावीर हांसदा, सरजू किस्कू, मोतीलाल मुर्मू, मिरू मुर्मू थे।
