“झारखंड में बंगला भाषा की लड़ाई, सम्मान के लिए आवाज उठाने को तैयार हैं बंगभाषी”
बंगला भाषा को झारखंड में उचित सम्मान देने की मांग जोर पकड़ रही है। झारखंड बंगभाषी उन्नयन समिति और विभिन्न बंगला भाषी संगठनों ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है। उनका कहना है कि झारखंड में बंगला दूसरी राजभाषा होने के बावजूद इसका उचित सम्मान नहीं मिल रहा है।

बंगला भाषा विश्व की सबसे सरल, मधुर, उन्नत और धनवान भाषाओं में से एक है। झारखंड में लगभग 42% बंगला भाषी लोग निवास करते हैं और राज्य के 24 जिलों में से 14 जिले बंगला भाषी प्रधान हैं। अतीत में झारखंड में बंगला भाषा की पढ़ाई व्यापक रूप से होती थी और बांग्ला माध्यम के स्कूल हुआ करते थे।
झारखंड बनने के बाद बंगला की पढ़ाई-लिखाई लगभग बंद हो गई और धीरे-धीरे बंगला माध्यम के स्कूल हिंदी माध्यम में परिवर्तित हो गए। इससे बंगला भाषी लोगों को अपनी भाषा, संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
झारखंड बंगभाषी उन्नयन समिति ने बंगला भाषा को प्रतिष्ठित करने के लिए सरकार से आवेदन, निवेदन, धरना और प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है। साथ ही, विभिन्न बंगला भाषी संगठन भी इस दिशा में काम कर रहे हैं और जगह-जगह पर अपुर पाठशाला खोलकर भावी पीढ़ी को बंगला सिखाने का प्रयास कर रहे हैं।
बंगभाषी लोगों का कहना है कि झारखंड सरकार को उनकी भावनाओं को समझना चाहिए और उन्हें यथोचित सम्मान देना चाहिए। वे किसी भी भाषा के प्रति विद्वेष या असम्मान नहीं रखते हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा बंगला के प्रति श्रद्धा और प्रेम रखते हैं। झारखंड सरकार से अनुरोध है कि वह बंगला भाषा को उचित सम्मान देने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
