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“प्रकृति और कृषि का पर्व: रोहिन परब की महत्ता और परंपराएं”

रोहिन परब: प्रकृति और कृषि का पर्व

 

हमारे पारंपरिक पर्व और त्योहार प्रकृति और कृषि से जुड़े हुए हैं। इसी कड़ी में जेठ महीने के तेरहवें दिन से अगले सात दिन तक मनाया जाने वाला ‘रोहिन परब’ एक अतिविशिष्ट पर्व है। इस पर्व का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है, क्योंकि यह पर्व हमें प्रकृति और कृषि के महत्व को समझाता है।

 

रोहिन परब के दौरान कई परंपराएं निभाई जाती हैं। भोर सुबह से घर की महिलाएं घर, आँगन, गोहाइल साफ सुथरा करके गोबर का नुड़ा देती हैं। घर के दीवार पर चारों ओर चार अँगुली की गोबर नुड़ा की रेखाएं खींची जाती हैं, जिससे हानिकारक सरीसृप, कीड़े मकोड़े घर के अंदर प्रवेश ना कर सकें।

 

इस पर्व के दौरान घर के धान-चावल नाप-जोख के प्रत्येक सामान को गुँड़ि/चुनि, सिंदुर लगाकर सम्मानपूर्वक भुतपिंड़हा के समक्ष उबड़ाके रखा जाता है। खेत में तीन मुट्ठी धान बिहिन देकर पुरखों और प्रकृति महाशक्ति की अराधना की जाती है। शाम को अपने या अपने गुसटि भाइआद के खेत से ‘रोहिन माटि’ लाने की विशेष परंपरा है, जिस माटि में हमारे पुरखों की कड़ी मेहनत और खून-पसीना समाहित रहती है।

 

रोहिन परब का महत्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है, क्योंकि यह पर्व हमें प्रकृति और कृषि के महत्व को समझाता है। यह पर्व हमें अपने पुरखों की कड़ी मेहनत और खून-पसीने को याद दिलाता है, जिसने हमें आज का जीवन दिया है।

 

हम सभी को रोहिन परब की हार्दिक शुभकामनाएं। आइए हम इस पर्व के महत्व को समझें और अपनी पारंपरिक परंपराओं को निभाएं।

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