protest against tree plantation-ग्रामीणों ने किया गैर मजरूआ खास जमीन पर वृक्षारोपण का विरोध
Chakradharpur:- बंदगांव प्रखंड के ओटार गांव में शनिवार को वन क्षेत्र पदाधिकारी सामाजिक वानिकी प्रक्षेत्र झींकपानी, पश्चिमी सिंहभूम द्वारा वृक्षारोपण किया जा रहा था। गांव में इसकी सूचना ग्रामीणों को होने पर वृक्षारोपण पर आपत्ति जताई एवं वन विभाग से आये फॉरेस्ट गार्ड्स को घेर लिया।
ज्ञात हो कि 10 मार्च को ग्राम सभा करके अनापत्ति प्रमाण पत्र को रद्द किया गया था एवं संबंधित पदाधिकारी को इसकी सूचना दी गई थी। ग्रामीणों का कहना है कि वन क्षेत्र में हमारे श्मशान घाट, सरना स्थल हैं। पूर्व से हाट, बाजार होता आ रहा है। अतएव वृक्षारोपण करने नहीं दिया जाएगा, क्योंकि इससे हमारा अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। गरीब, दुखी परिवार अपना भरण पोषण पत्ता, दातुन बेचकर नहीं कर पाएगा।
ग्रामीण मुंडा रामशंकर महतो की अध्यक्षता में हुई ग्राम सभा में इसे सर्वसम्मति से पारित किया गया था, इसके बावजूद शनिवार को वन विभाग के फॉरेस्ट गार्ड, फॉरेस्टर के इशारे पर वृक्षारोपण के लिए आए थे। उग्र ग्रामीणों ने इसका पुरजोर विरोध किया। मौके पर पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता बसंत महतो ने इसके सूचना पश्चिमी सिंहभूम जिले के उपायुक्त को दी और कहा कि राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग झारखंड सरकार के अधिकार अभिलेख के अनुसार खतियान में खाता संख्या एक जिसका जिक्र विभाग ने किया है, इसमें गैर मजरूआ आम जमीन का रिकार्ड मौजूद नहीं है। जिला- पश्चिमी सिंहभूम, अंचल-बंदगांव, हल्का संख्या 8, मौजा- ओटार,थाना नंबर- 42, खाता संख्या-एक में सिर्फ गैर मजरूआ खास जमीन है एवं जमीन का प्रकार रैयत है। खाता संख्या एक के ज्यादातर प्लॉटों का बंदोबस्ती हो चुका है। इसमें किसी का घर, आंगन, बाड़ी वगैरा है। अन्य प्लॉटों पर कहीं जहीरा,स्कूल,बांध, तालाब तो कहीं रास्ता, नाली, शमशान घाट व खलियान आदि है। 1950 से पहले जमींदारी प्रथा थी। पहले जमींदार होते थे जो राजस्व वसूल कर ब्रिटिश सरकार को देते थे। वर्तमान में उनके स्थान पर अंचल अधिकारियों की नियुक्ति हुई है जो राजस्व की वसूली करके सरकार को देते हैं। 1 जनवरी 1946 से पहले क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बंदोबस्ती हुआ है एवं आवासीय व कृषि कार्य के लिए जमीन किसी खास व्यक्ति को दिया गया जिसका संबंधित व्यक्ति राजस्व देता है एवं हुकुकनामा है। इसका जमीन का इस्तेमाल व्यक्ति विशेष द्वारा जिसके नाम पर बंदोबस्ती हुआ है, पिछले कई दशकों से करता आ रहा है। ऐसे में गैर मजरूआ खास जमीन पर वृक्षारोपण की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
काफ़ी समझाने के बाद ग्रामीणों का गुस्सा शांत हुआ। अंतता ग्रामीणों ने वन विभाग के फॉरेस्ट गार्ड्स को बिना इजाजत के दोबारा यहां नहीं आने की नसीहत दी गई है। इसकी सूचना अंचल अधिकारी, बंदगांव को दिए जाने पर उन्होंने स्पष्ट किया है कि शब्दावली को बदलकर वन विभाग के पदाधिकारी ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं। मैं सीधे विभाग से बात करूंगी। मौके पर मुखिया सुकमती जोंको, ग्रामीण मुंडा प्रतिनिधि नरेश महतो, जयसिंह बोदरा, श्याम मुर्मू, देवेंद्र मांझी, गोमिया गागराई, कुंती बोदरा, सुकमति गागराई, लखन जोंको, लालमोहन महतो समेत सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित थे।