Tribals Festival-24 फरवरी को धूमधाम से मनाया जायेगा संताल समाज के विद्या देवता बिदु- चांदन की पूजन उत्सव, तैयारी शुरू
Saraikella/Rajnagar:- 24 फरवरी को धूमधाम से बांदु गांव में विद्या देवता बिदु-चांदन की पूजन उत्सव मनाया जायेगा।
इस उत्सव को लेकर बांदु गांव निवासी व झामुमो के प्रखंड अध्यक्ष रामजीत हांसदा बताते हैं कि जिस तरह हिंदू सनातन संस्कृति में मां सरस्वती को विद्या की देवी माना माना जाता है, उसी प्रकार आदिवासी समाज में बिदु-चांदन अनल बोंगा को ज्ञान का देवी देवता माना जाता है। आदिवासी अलचिकी लिपि के माध्यम से पत्थरों पर उन्होंने अपनी बातों को पत्थरों पर उकेरा था।
पुरानी दुश्मनी को समाप्त करने के लिए लिटा गोसाई ने इन्हें धरती पर भेजा
रामजीत हांसदा ने बताया कि आदिवासियों का इतिहास कहीं भी लिखित रूप में मौजूद नहीं है। बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार आदिवासी के दो गढ़ थे एक चायगाढ़ एवं दूसरा मानगाढ़, दोनों गढ़ में पुरानी दुश्मनी को मिटाने के लिए लिटा गोसाईं ने स्वर्ग लोक से इन दोनों बिदु चांदन को जीवित रूप देकर धरती पर भेजा था। एक पुरुष जिसका नाम रखा गया बिदू एवं दूसरी स्त्री जिसका नाम रखा गया चांदान।
बिदू का जन्म बाहागढ़ में हुआ जो घनघोर जंगलों के बीच था। वहीं चांदान का जन्म चायगाढ़ के माझी बाबा के घर हुआ था। एक दिन बिदू घूमते घूमते चायगाढ़ पहुंचा तथा उन लोगों के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुआ।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होने के दौरान बिदू एवं चांदान के बीच प्रेम हो गया। इन दोनों का प्रेम प्रसंग चायगाढ़ के लोगों एवं चांदन के पिता जिसे वो पसंद नहीं था, तक पहुँच गया। इस कारण चायगाढ़ के लोग बिदू की पिटाई करने लगे। बिदू किसी तरह उन लोगों के चंगुल से जान बचाकर जंगल की ओर भागा। चायगाढ़ के लोगों ने उसका पीछा किया परंतु ढूँढ नहीं पाए। इन लोगों ने मान लिया कि वह मर चुका है। परंतु बिदू ने भागते समय पत्थरों पर ओलचिकी भाषा में लिख दिया कि मैं सुरक्षित हूं तथा कहां पर हूं। वह जानता था कि यह भाषा चांदन को छोड़कर कोई नहीं पढ़ सकता। क्योंकि इन दोनों ने आपस में बात करने एवं अपनी बातों का आदान- प्रदान करने के लिए पत्थर पर लिखकर इस भाषा का आविष्कार किया था।
चांदन ने भाषा को पढ़ लिया तथा वह समझ गई कि बिदू सुरक्षित है तथा कहां पर है। बाद में उन दोनों का मिलन हुआ और इस तरह आदिवासी समाज में अलचिकी लिपि की शुरुआत हुई।
अल गुरु पंडित रघुनाथ मुर्मू ने इसे बढ़ाया
पंडित रघुनाथ मुर्मू ने बिदू चांदन की पूजा करके इन दोनों के आशीर्वाद से इस भाषा को बढ़ाने का काम किया। पंडित रघुनाथ मुर्मू का जन्म 5 मई 1905 को उड़ीसा के मयूरभंज जिले में हुआ था। उन्होंने अलचिकी लिपि का विस्तार किया तथा अनेकों किताब लिख डाली। जिनमें प्रमुख किताबें अल चेमेद, पारसी पोहा, रोनोड़, ऐलखा हिताल, बिदू चांदन, खेरबाड़ वीर, शामिल है। रामजीत ने कहा कि ओलचिकी लिपि का ज्ञान सभी आदिवासियों को होना चाहिए तभी हमारा समाज संस्कृति धर्म इत्यादि के बारे में आने वाली पीढ़ी जान सकेगी। बैठक में शिक्षक हराधन मांडी, कविराज रूबीन हांसदा, चैतन हांसदा सहित कई महिला पुरुष उपस्थित रहे।