Tusu-Festival-in-Chhotanagpur-plateau-plateau:
मकर संक्रांति के साथ टुसू पर्व,क्यू मनाया जाता है? जानिए इसके पीछे की पूरी करण.
छोटानागपुर पठार में मनाये जाने वाले टुसू पर्व के बारे में शायद आप कम ही जानते होंगे. यह छोटानागपुर के कुड़मी और आदिवासी मूलवासीयों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. इस आलेख में हम आपको बतायेंगे टुसू परब जो कि कुड़माली शब्द है.
टुसू पर्व छोटानागपुर के कुड़मी और आदिवासी मूलवासीयों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. यह जाड़ों में फसल कटने के बाद पौष के महीने में मनाया जाता है. यह पर्व मकर संक्रांति के एक माह पूर्व से शूरु होती है उसे छोटा मकर कहा जाता है 14 या 15 तारिक को प्रत्येक वर्ष मकर संक्राति मानते है और साथ ही लगभग एक महीने तक मनाया जाता है. टूसू का शाब्दिक अर्थ कुड़माली भाषा में डीनी यानि धान को कहा जाता है .वैसे तो छोटानागपुर पठार के सभी पर्व- त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व को सबसे महत्वपूर्ण परब में से एक है.
टुसू पर्व के इतिहास का कुछ खास लिखित स्त्रोत तो नहीं है लेकिन इस पर्व में बहुत से कर्मकांड होते हैं और यह अत्यंत ही रंगीन और जीवन से परिपूर्ण त्यौहार है. मकर संक्राति के शूभ अवसर पर मनाये जाने वाले इस त्योहार के दिन पूरे आदिवासी मूलवासी समुदाय द्वारा अपने नाच- गानों और मकर संक्रांति पर सुबह नदी में स्नान कर उगते सूरज की प्रार्थना करके टुसू की पूजा की जाती है. और नववर्ष की समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है. इस प्रकार यह आस्था का पर्व श्रद्धा, भक्ति और आनंद से परिपूर्ण कर देती हैं.
कहां-कहां मनाया जाता है टुसू परब.
टुसू परब झारखंड के दक्षिण पूर्व रांची, खूंटी, सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, रामगढ़, बोकारो, धनबाद जिलों और पंचपरना क्षेत्र की प्रमुख परब है. साथ ही झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिलों, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभुंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है. इस उत्सव को अघन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक इसे कुंवारी कन्याओं के द्वारा टुसू पूजन के रूप में मनाया जाता है. घर की कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन संध्या समय में टुसू की पूजा करती हैं. गांव की कुंवारी कन्याएं टुसू थपना करती हैं. टुसु के चारों ओर सजावट करती हैं और फिर धूप, दीप के साथ टुसू की पूजा करती है.
इन नामों से जाना जाता है टुसू पर्व
टुसू पर्व तीन नामों से जाना जाता है. पहला टुसु परब, मकर परब और पूस परब. इन तीन नामों के अलावा बांउड़ी और आखान जातरा का एक विशेष महत्त्व है. बांऊड़ी के दूसरा दिन यानी मकर संक्रांति के दूसरे दिन “आखान जातरा” मनाया जाता है. कृषि कार्य समापन के साथ-साथ कृषि कार्य प्रारंभ का भी आगाज किया जाता है. कहने का तात्पर्य यह है कि बांउड़ी तक प्रायः खलिहान का कार्य समाप्त कर आखान जातरा के दिन कृषि कार्य का प्रारंभ मकर संक्रांति के दिन होता है. कुड़मी समुदायों, किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. आखान जातरा के दिन हर तरह के काम के लिए शुभ माना जाता है. बड़े बुजुर्ग के कथानुसार इस दिन नया घर बनाने के लिए बुनियादी खोदना या शुरू करना अति उत्तम दिन माना जाता है.या विवाह योग्य लड़का के लिए लड़की देखना भी प्रारंभ कर लिया जाता है. इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है.
टुसु क्या है
टुसू पर्व को धूमधाम से मनाने के पीछे क्या करण हैं.
किसान अपने खेतों में 12 महीना काम कर फसल को घर लेकर आते है, और उसी धान को बेचकर अपने फॅमिली को नया कपड़ा गुड़ पीठा, मीट मछली के साथ बहुत सारे पकवान अपने घरो मे बनाते है. और टुसु गीत के साथ नाचते गाते हैं. किसान को अगर कोई खुशी दिया तो वो और कुछ नहीं धान है. धान यानि टुसु जिसे डिनी माई में के रूप में मानते है और उसी का पूजा करते है.
टुसू गीत
भालोई धान होयलों ई बोछोर साया साड़ी किने दीबो चोल…
टुसू टुसू टुसू धन भालो हांदेर आंधार घोरे होय आलो…