Hatiyapathar-melaवादा न निभाने पर दंड का प्रतीक है हथियापत्थर धाम, हथिया पत्थर मेला में जुटे हजारों श्रद्धालु
बेरमो – मकर संक्रांति के उपलक्ष्य में फुसरो के पेटरवार प्रखंड के पिछरी दामोदर नदी स्थित हथियापत्थर धाम में भव्य मेला लगा.
मेला में स्थानीय सहित दूरदराज के हजारों ग्रामीणों की भीड़ उमड़ी
साथ ही सुबह से ही लोग दामोदर नदी में स्नान कर पूजापाठ करने में जुटे.
हथिया पत्थर में लोग प्रसाद लेकर तथा धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा कर मनोकामना पूरी होने की मन्नतें मांगते हैं…
क्योंपड़ाहथियापत्थरधामका_नाम…
यहां मौजूद हाथी के स्वरूप के विशालकाय पत्थर को हथियापत्थर कहा जाता है, जो एक राजा के वादा न निभाने पर दंड के प्रतीक के रूप में मशहूर है.
इस हथिया पत्थर के संबंध में प्रचलित किंवदंती के अनुसार किसी जमाने में एक राजा की बारात को स्थानीय दामोदर नदी के उस पार जाना था, लेकिन नदी में अचानक बाढ़ आ जाने के कारण बारात का उस पार जाना संभव नहीं हो पा रहा था.
तब राजा ने मन्नत मानी कि यदि नदी की बाढ़ का उफान थम जाएगा और घोड़े-हाथी समेत तमाम बाराती व सेना उस पार सकुशल पहुंच जाएंगे, तो वे पूजा-अर्चना करेंगे. कहते हैं कि राजा द्वारा उक्त मन्नत मानने के कुछ क्षण बाद ही नदी में बाढ़ का उफान थम गया और राजा की बारात नदी को पार कर सकुशल उस पार चली गई. उस पार पहुंचते ही रानी द्वारा मन्नत पूरी करने की बात पूछे जाने पर राजा अपनी मन्नत से मुकर गया…
कहा जाता है कि उसके बाद जब उस बारात की वापसी होने लगी तब तो नदी की जलधारा बिल्कुल शांत थी, लेकिन ज्योंही हाथी-घोड़े पर सवार बाराती व दूल्हा बने राजा नदी को पार करने को जलधारा में उतरे, अचानक नदी में जोरदार बाढ़ आ गई और देखते ही देखते राजा सहित उनके तमाम बाराती व सैनिक उसमें डूब गये। बाद में जब नदी का बाढ़ शांत हुआ…
तो लोग यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि राजा व उनके हाथी सहित घोड़े, बाराती व तमाम सैनिक चट्टान के रूप में परिणत हो गए थे.
हथियापत्थर के संबंध में उक्त किंवदंती आज भी प्रचलित है और उस कृतघ्न राजा की बारात डूबने की याद में मकर संक्रांति के अवसर पर यहां लगने वाले मेले में लोग भारी संख्या में उपस्थित होकर पूजा-अर्चना करने सहित मन्न्तें मांगते हैं..
साथ ही मकर संक्रांति के उपलक्ष्य में मेला के प्रति लोगों में मात्र मनोरंजन ही नहीं, अगाध श्रद्धा भी विद्यमान है…