गिरिडीह लोकसभा सीट पर कमल खिलेगा या चलेगा तीर-धनुष, जानिय इस सीट की पूरी कुंडली
Desk:- (अशोक कुमार ) गिरिडीह लोकसभा छोटानागपुर पठार का हिस्सा है यह क्षेत्र मुगल काल मे खुखरा नाम से जाना जाता था। यह लोकसभा क्षेत्र झारखण्ड के महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्रो मे से एक है इस लोकसभा को गिरिडीह बोकारो धनबाद के कुछ हिस्सो को मिलाकर बनाया गया है।
इस लोकसभा मे छः विधानसभा बाघमारा, डुमरी, बेरमो, टुण्डी, गिरिडीह और गोमिया शामिल है। जहां तक गिरिडीह जिला के अस्तिव की बात है तो ये पहले हजारीबाग जिले मे शामिल था। 4 दिसम्वर 1972 को हजारीबाग जिले से काटकर बनाया गया था। यह जिला 24 डिग्री 11 मिनट उतरी अक्षांश और 86 डिग्री 18 मिनट पूर्व देशान्तर के बीच स्थित है। यह क्षेत्र दुर्गम पहाड़ी और जंगलो से घिरा है इस क्षेत्र मे अभ्रक और कोयले की व्यापक भंडार है।
जैनियो के पवित्र तीर्थस्थल पार्श्वनाथ गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में ही पड़ता है। वही नोबेल पुरस्कार विजेता जगदीश चंद्र बोस कभी जन्मस्थली भी गिरिडीह क्षेत्र में ही है।अगर गिरिडीह लोकसभा का इतिहास देखा जाय तो काजी एस ए मातीन ने पहला लोकसभा चुनाव जीता था कांग्रेस के नागेन्द्र प्रसाद सिन्हा को हराकर, तीसरा 1967 लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी ठाकुर बटेश्वर सिंह ने चपुलेन्दू भट्टाचार्य को हराया, सरफराज अहमद के पिता डा० अब्दुल इमतियाज अहमद ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर परचम लहराया, अगले लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी को बदल कर चपलेन्दू भट्टाचार्य को प्रत्याशी वनाया और इसने भी जीत दर्ज की 1977 मे, लोकदल पार्टी के उम्मीदवार रामदास सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया 1980 का लोकसभा चुनाव गिरिडीह संसदीय सीट के लिए कई मायने मे महत्वपूर्ण रहा क्योकि इसी समय विन्देश्वरी दुवे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे, जो कभी बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे थे। एक और खास बात ये थी कि विनोद बिहारी महतो झारखण्ड के कद्दावर नेता ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे नमांकन कराया था और 18.4 प्रतिशत मत प्राप्त कर अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई थी।
1984 में इंदिरा गांधी के निधन के बाद सहणाहूति के लहर पर सरफराज अहमद कांग्रेस के टिकट से लोकसभा पहुंचे।1989 में भाजपा प्रत्याशी रामदास सिंह ने विनोद बिहारी महतो को हराकर पहली बार गिरिडीह लोकसभा में कमल का फूल खिला। 1991 के लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी विनोद बिहारी महतो ने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रामदास सिंह को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे, वही सरफराज अहमद तीसरे स्थान पर रहे।
विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद उपचुनाव में उनके बड़े पुत्र राज किशोर महतो जीत कर लोकसभा पहुंचे इसके बाद रविन्द्र पांडे का जीत का सिलसिला जारी हुआ और वह लगातार तीन बार इस क्षेत्र से विजय रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव मे टेकलाल महतो ने रविन्द्र पांडे को हराकर लोकसभा पहुंचे, बाद मे फिर 2009 और 2014 मे फिर से भाजपा प्रत्याशी रविन्द्र पांडे लोकसभा पहुंचे। 2019 के लोकसभा मे गिरिडीह सीट भाजपा के गठबंधन के साथी आजसू के खाते मे गई और यहां से आजसू प्रत्याशी चन्द्रप्रकाश चौधरी ने जगरनाथ महतो को हराकर झारखण्ड मे पहली लोकसभा जीत कर दिल्ली के लुटियंस भवन मे प्रवेश किया।
2024 के लोकसभा मे भी आजसू के निवर्तमान सांसद चन्द्रप्रकाश चौधरी फिर से एक बार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के प्रत्याशी हैं लेकिन महागठबंधन के प्रत्याशी इस बार टुंडी के वर्तमान विधायक मथुरा प्रसाद महतो हैं। अब देखना यह है कि चंद्र प्रकाश चौधरी इस बार नई संसद भवन पहुंच पाते है या नही या फिर मथुरा प्रसाद महतो, ये तो 25 मई को जनता के द्वारा ही तय होगा।
इस तरह अगर गिरिडीह लोकसभा का इतिहास को देखा जाय तो कांग्रेस के लिए यह सीट अशुभ ही साबित हुई है क्योकि 1984 के बाद से यहां से अभी तक कोई कांग्रेस के विजय विजय होने तो दुर अब यह सीट अपने सहयोगी पार्टी को दे दी जाती है और यही कारण है कि 2004 मे झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के टेकलाल महतो विजय हुए थे और अब यह सीट से कांग्रेस के सहयोगी ही चुनाव लडती है।
अगर लोकसभा के गणित के लिहाज से देखा जाय तो छः विधान सभा मे तीन पर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है ये विधान सभा गिरिडीह, टुंडी और डुमरी। बेरमो कांग्रेस, गोमिया आजसू और बाघमारा भाजपा का कब्जा है।
2019 के लोकसभा चुनाव को अगर देखा जाय तो ढुल्लू महतो ने चन्द्रप्रकाश चौधरी को काफी मदद की थी लेकिन इस बार ढुल्लू महतो खुद ही धनबाद लोकसभा के भाजपा प्रत्याशी है इस लिहाज से सी०पी0 चौधरी के डगर थोडा मुश्किल प्रतीत हो रहा है।
वैसे भी चंद्र प्रकाश चौधरी को लेकर बाघमारा विधानसभा क्षेत्र एवं टुंडे विधानसभा क्षेत्र में जनता के द्वारा खासी नाराजगी देखी जा रही है। इन दोनों ही विधानसभाओं के जनता का कहना है कि पांच साल का रिपोर्ट कार्ड एकदम खराब है और यही वजह भी है कि तोपचांची और टुंडी के भाजपा के कार्यकर्ताओ ने खुले मंच से सी०पी० चौधरी का विरोध भी कर चुके है।
अब देखना यह है कि सी०पी० चौधरी दिल्ली अपने दम पर पहुंच पाते है या भाजपा के दम पर क्योंकि पिछले लोकसभा में गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में एक नारा खूब मशहूर हुआ था कि केला ही कमल है, क्या इस बार ये नारा देखने को मिलेगा। अगर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी मथुरा प्रसाद महतो की बात की जाय तो टुंडी इनका कर्मभूमि तो बाघमारा इनका जन्मभूमि है। अगर स्थानीय होने के नाते इन दो विधान सभा मे मथुरा प्रसाद महतो को खुलकर यहां की जनता ने वोट कर दिया तो सी०पी० चौधरी की दिल्ली यात्रा कठिन हो सकती है अब देखना यह है कि गिरिडीह की 59.6 प्रतिशत साक्षर मतदाता 25 मई को किसे अपना अगला सांसद चुनती है।