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जमशेदपुर लोकसभा सीट की रेस में कौन है सबसे आगे? झामुमो किस कुडमी चेहरा पर लगाएगी दाव

Desk:- टाटा स्टील के नाम से शुमार जमशेदपुर झारखंड की 14 लोक सभा सीटों में से एक अहम सीट है। भले ही जमशेदपुर सिटी में कई जाती कई धर्म के लोग रहते है लेकिन चुनाव परिणाम में कुडमी हावी रहते है।

लोक सभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी सहित देश के तमाम दल कमर कस कर तैयारियों में जुट गए है, और इसमें बीजेपी 4 कदम आगे चल रही है। जहां महागठबंधन ने अब तक उम्मीदवारों की मंथन में लगी है वही बाबूलाल मारंडी ज़िला ज़िला घूम-घूम कर कार्यकर्ताओं को जीत की टिप्स दे रहे है।

जमशेदपुर लोकसभा सीट की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार भाजपा ने विद्युत वरण महतो को टिकट दिया है
विपक्ष की ओर से जमशेदपुर लोकसभा सीट पर मजबूत दावेदारी किसकी होगी इसको लेकर अभी भी बहस जारी है बताया जा रहा है कि 5 से 7 अप्रैल तक नाम फाइनल होने की उम्मीद है

सूत्रों की माने तो जमशेदपुर सीट पर कई तरह के क्यास लगाए जा रहे हैं चुकी जमशेदपुर सीट शुरु से ही महतो बाहुल्य क्षेत्र रहा है इसलिए झामुमो पार्टी इस बार किसी महतो चेहरे की तालाश में है

उन्हीं चेहरों में मुख्यता चार नाम सामने आ रहे है

मौजूदा सरायकेला ज़िला अध्यक्ष डॉ शुभेन्दु महतो
इचागड विधायक सबिता महतो की बेटी स्नेहा महतो, आस्तिक महतो एवं सुनील महतो।

कौन है डॉ शुभेन्दु महतो जो पेश कर रहे मज़बूत दावेदारी

डॉक्टर महतो वर्ष 1984 में को-ऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर से छात्र नेता के रूप में अपनी राजनीति सफर शुरू किए हैं और आज़ कोल्हान में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक हैं अपने शांत स्वभाव, बेबाक अदा और सुनियोजित रणनीति के जरिए विपक्षियों में खलबली मचाने वाले डॉ शुभेन्दु महतो के राजनीतिक प्रेरणास्रोत शहीद निर्मल महतो हैं। वर्ष 1985 में निर्मल महतो के संपर्क में आने के बाद उनकी विचारधारा और कार्यशैली से प्रभावित होकर वे राजनीति में कूदे। वर्ष 1987 में झारखण्ड आंदोलन के दौरान उन्होंने प्रभावी भूमिका निभाई। वर्ष 1991 में उन्हें 5 माह के लिए जेल यात्रा भी करनी पड़ी। डॉ महतो के व्यक्तित्व की सबसे खास बात है कि चेहरे से बिल्कुल शांतचित्त नज़र आते हैं लेकिन अंदर उमड़ रही आक्रामक रणनीति और राजनीतिक चाल से पार पाना विरोधियों के लिए टेढ़ी खीर साबित होती रही है। येही कारण है कि उन्हें कोल्हान की राजनीति का साइलेंट किलर माना जाता है कार्यकर्ताओं को संगठित करने की बात हो या किसी राजनीतिक मसले पर तर्कसंगत टिप्पणी उनकी कोई सानी नहीं है। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का हिस्सा बनने के बाद भी कई ऐसे मौके आए जब उन पर उंगलियां भी उठीं, अपमानित भी होना पड़ा यूं कहें कि उन्हें अग्निपरीक्षा देनी पड़ी किंतु इन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने पार्टी का दामन नहीं छोड़ा। बकौल डॉ शुभेन्दु महतो पार्टी उनकी मां समान है और यह अटूट आस्था आजीवन बरकरार रहेगी। शीर्ष नेताओं का उन पर भरोसा और कार्यकर्ताओं का विश्वास ही था कि जिलाध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने वर्ष 2019 में हुए विधानसभा आम चुनाव में सरायकेला-खरसावां जिले की तीनों सीट झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की झोली में डाल दीं।

डॉ शुभेन्दु महतो वर्तमान में सरायकेला जिला अध्यक्ष एवं बीस सूत्री कमेटी में भी हैं । इन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल से रिहा होने तक अपने पैरों में जूता -चप्पल नहीं पहनने का संकल्प लिया है जो इन्हें झामुमो पार्टी एवं सोरेन परिवार के काफी करीब ले आया है ।

दूसरा सबसे चर्चित नाम स्नेहा महतो का है, कौन है स्नेहा?

दुनिया की लब्ध प्रतिष्ठित संस्थानों में शुमार लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करने वाली स्नेहा महतो को जमशेदपुर सीट से जेएमएम का उम्मीदवार बनाये जाने की खबर है. जैसे ही यह खबर सामने आयी, सोशल मीडिया पर स्नेहा महतो के नाम की खोज शुरु हो गयी और साथ ही स्नेहा महतो की इंट्री के बाद जमशेदुपर के सियासी समीकरण में क्या बदलाव आयेगा इसका आकलन किया जाने लगा है

इचागढ़ विधायक सवीता महतो की बेटी हैं स्नेहा महतो

यहां बता दें कि स्नेहा महतो झारखंड की सियासत का कद्दावर चेहरा सुधीर महतो की बेटी है. सुधीर महतो की मौत के उनकी पत्नी सवीता महतो को झामुमो ने इचागढ़ में अपना चेहरा बनाया और वह वर्ष 2019 में विधान सभा पहुंचने में सफल रही. इसके पहले सुधीर महतो भी इसी सीट से वर्ष 2005 में विधान सभा पहुंचे थे और मधुकोड़ा सरकार में उपमुख्यमंत्री बने थें. स्नेहा महतो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी मां के साथ इचागढ़ में सक्रिय हैं. स्नेहा महतो ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत सेक्रिड हार्ड कान्वेंट स्कूल, जमशेदुपर के बाद आगे की शिक्षा के लिए माउंट कार्मेल कॉलेज बेगंलरु चली गयी, और आखिरकार लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अपनी शिक्षा पूरी की.

तीसरा नाम है आस्तिक महतो का, जानिए कौन है आस्तिक?

कुड़मी राजनीति में आस्तिक महतो का बड़ा नाम है. कुड़मी बहुल इलाके की चुनावी फिजां को आस्तिक किसी भी ओर मोड़ने की हैसियत जरूर रखते हैं. जमशेदपुर की सामान्य आबादी (जनरल वोटर) भी उन्हें सकारात्मक नजरिए से देखता है. मतदान के वक्त झामुमो प्रत्याशी के नाते उन्हें वोट करेगा या नहीं, इस पर दावा नहीं किया जा सकता. कुड़मी को आदिवासी का दर्जा दिलाने की मांग पर लंबे समय से आंदोलन चल रहा है. इसमें आस्तिक महतो हमेशा मुखर रहे है. इस नाते आदिवासियों का एक तबका उनके प्रति तनिक खुन्नस भी रखता है. आदिवासी झामुमो के कोर वोटर हैं. विधायक मंगल कालिंदी और समीर मोहंती समेत झामुमो के नेताओं की लंबी जमात है जो आस्तिक को उम्मीदवार के तौर पर देखना चाहती है. सीएम चंपाई सोरेन उनके नाम पर रजामंद होंगे, यह अहम सवाल है.

आख़िरी नाम है सुनील महतो का

झामुमो के सदाबहार नेता हैं, सुनील महतो मीता।
मीता इनका नाम नहीं है. राह में जो मिला, उसे मीत यानी दोस्त बना लेते हैं. इसलिए मीता उपनाम पड़ है। राजनीति में यही इनकी ताकत है।

जब झारखंड आंदोलन चरम पर था, तब किशोरावस्था में झामुमो की राजनीति में आए। 1989 में पोटका ब्लॉक अध्यक्ष बने. झारखंड बना तो जिला कार्यसमिति में थे. पांच बार जिला सचिव रहे. केंद्रीय सचिव भी. झारखंड आंदोलन के जमाने से अभी तक पंचायत से लेकर जिला स्तर के सभी नए पुराने कार्यकर्ताओं से ताल्लुक है. जो घर में बैठ गए है, उन्हें भी अपने नाम पर बाहर निकलने का हुनर है श्री सुनील में। सबसे बड़ी खासियत कुड़माली, संथाली, बंगाली, उड़िया, भोजपुरी, हिन्दी, हर भाषा बोल लेते है। यही वजह है कि हरेक चुनाव में उनकी दावेदारी हल्के में नहीं ली जाती.

क्या है सियासी सामाजिक समीकरण

यहां बता दें कि एक आकलन के अनुसार जमशेदपुर सीट पर अनुसूचित जन जाति की आबादी-28 फीसदी, अल्पसंख्यक- फीसदी और इसके साथ ही कुड़मी महतो की आबादी करीबन तीन लाख मानी जाती है. यदि हम वर्तमान सियासी समीकरण की बात करें तो इस लोकसभा के अंतर्गत कुल छह विधान सभा आता है, इसमें बहरागोड़ा विधान सभा पर झामुमो (समीर मोहंती), घाटशीला झामुमो (रामदास सोरेन), पोटका झामुमो (संजीव सरदार), जुगसुलाई झामुमो (मंगल कांलिदी), जमशेदुपर से निर्दलीय सरयू राय, जमशेदपुर पश्चिमी कांग्रेस (बन्ना गुप्ता) का कब्जा है, यानि कुल छह में चार पर झामुमो, एक पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय सरयू राय का कब्जा है, किसी भी विधान सभा में आज के दिन भाजपा की उपस्थिति नहीं है. और इस हालत में झामुमो के द्वारा स्नेहा महतो पर दांव लगाना भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है, इसकी एक दूसरी वजह भी है, कुर्मी जाति के द्वारा लम्बे समय से अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग की जाती रही है, लेकिन जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इसे सार्वजनिक रुप रे खारिज कर चुके हैं, बताया जाता है कि अर्जुन मुंडा के उस बयान के बाद कुर्मी जाति में काफी नाराजगी है, जबकि जमशेदपुर में करीबन तीन लाख कुर्मी जाति की आबादी है. इस हालत में कुर्मी जाति के सामने इस बार बार विकल्प के रुप में स्नेहा महतो का चेहरा होगा. यानि कुर्मी जाति का जो वोट थोक भाव में भाजपा के पास जाता था, इस बार उसमें बड़ी सेंधमारी हो सकती है. इस हालत में यदि इस बार जमशेदुपर में तीर धनुष कमल को छेद जाय तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा.

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