चुनाव के बीच झारखंड सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति सन् 2020 के तहत शिक्षा में उचित गुणवत्ता प्रदान करने हेतु जनजातीय/क्षेत्रीय भाषा(मातृभाषा)को प्राथमिक स्कूलों में लागू करने का निर्णय लिया है और पोटका प्रखंड के पूरे प्राथमिक स्कूलों में जाति वार सर्वेक्षण भी करा लिया गया है । सर्वेक्षण में निकली डाटा को आपसी साझा करने हेतु प्रखंड के दोनों प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी,श्री विनय कुमार दूबे,श्री अनिल कुमार,पशु चिकित्सक सह एमो,डॉ अशोक कुमार,बीआरपी श्री विश्वेश्वर नंदी,तथा चयनित कुछ वरिष्ठ शिक्षको को आमंत्रित किया गया था। संकल्प पत्र में कुछ कठिनाइयां भी पायी गयी जैसे कि--
अंचल ही नहीं बल्कि कदाचित यह पूरे सुबे में ही केवल बांग्ला भाषा में ही पढ़ाई लिखाई होती थी जबकि जमीन जायदाद की सारी कागजात भी बांग्ला भाषा में ही लिखी जाती थी पर कालांतर में सरकारी अव्यवस्था के कारण सुबे के सभी क्षेत्रीय भाषा लगभग इक्कीस-बाईस वर्षों से मृतप्राय हो चुकी है।
(१)अतः मृत क्षेत्रीय भाषाओं की भीड़ में जातिवार भाषाई गणना ही आज एक मात्र मार्ग है जिसमें सर्वेक्षण की पारदर्शिता में पूर्णता नहीं भी मिल सकती।
(२) संकल्प पत्रानुसार हर कक्षा में बच्चों की मानक संख्या दश है अर्थात एक भाषा के लिए एक स्कूल के लिए कम-से-कम(१-५)पचास बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति होनी है,जो बिल्कुल असंभव है।
(३) शिक्षक नियुक्ति में इंटर से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्तियों का प्रमाण पत्र की भी मांग की गई है जो संभव नहीं ।
(४) हां अगर जनहित पूर्ति करनी है तो शिक्षाविद के रूप में ही प्रशिक्षित अभ्यर्थियों को अवश्य नियुक्ति पत्र देनी होगी ।
(५) जहां बच्चों की कमी है वहां जनहित में किसी भी एक भाषा के लिए कुल बीस-पच्चीस बच्चों पर भी एक शिक्षक की नियुक्ति दी जा सकती है ।
आज यह भी निर्णय लिया गया है कि चुनाव परिणाम के पश्चात ही बुद्धिजीवियों की एक प्रतिनिधिमंडल,इस विषय पर झारखंड के मुख्यमंत्री माननीय चंपाई सोरेन जी से बात करने का प्रयास करेंगे । जय झारखंड।