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खतियानी भूमिज जमीन पर गैर-आदिवासी का कब्जा कराने की साजिश? बिरसा सेना ने तोड़ी दीवार, जमशेदपुर में गरमाया मामला

 

 

 

जमशेदपुर के उलीडी (सांकोसाई, जेपीसी स्कूल के सामने) में एक खतियानी आदिवासी भूमि को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है। मामला एक भूमिज सरदार परिवार की पुश्तैनी जमीन का है, जिस पर एक आदिवासी महिला बीरसी उरांव ने अपने गैर-आदिवासी पति कारण यादव के साथ कब्जा करने की कोशिश की, जिसे बिरसा सेना और स्थानीय आदिवासी समाज ने मिलकर विफल कर दिया।

 

क्या है विवाद का पूरा मामला?

10 मई को खतियानी भूमिज परिवार की सदस्य बाबरी सरदार — जो बंगाली सरदार भूमिज की पोती हैं — बिरसा सेना और समाज के प्रतिनिधियों के साथ उक्त भूमि पर पहुँचीं। वहां देखा गया कि बीरसी उरांव (पति कारण यादव) द्वारा बाबरी सरदार के पुश्तैनी घर के सामने अवैध रूप से दीवार खड़ी कर दी गई है। बीरसी उरांव का दावा है कि यह ज़मीन उनके पिता बीर सिंह उरांव की थी, जबकि खतियान रिकॉर्ड बंगाली सरदार भूमिज के नाम पर है, जिनके दो बेटे थे — रवि और साधु सरदार। रवि की इकलौती बेटी बाबरी सरदार ही वर्तमान में जीवित उत्तराधिकारी हैं।

 

दीवार तोड़ी गई, तो धमकियों का दौर शुरू

जब बिरसा सेना ने कथित अवैध दीवार को गिराया, तो बीरसी और उनके पति कारण यादव मौके पर आ धमके और आदिवासी समाज को “जातिवाद” की धमकियां देने लगे। यादव ने कहा कि वे बिहारी समाज को लाकर आदिवासियों से मुकाबला करवाएंगे, और बिरसा सेना को चुनौती देते हुए बोले कि क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने उन्हें दीवार तोड़ने का लाइसेंस दिया है?

 

 

मौके पर पुलिस आई, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि उनकी भूमिका निष्क्रिय रही। बाबरी सरदार का कहना है कि उन्होंने पहले ही थाने में लिखित शिकायत दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा, फोन पर बुलावा आते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई, जिससे प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।

 

क्या है जमीन की कानूनी स्थिति?

जानकारी के अनुसार, यह ज़मीन पहले एक गैर-आदिवासी अनिल प्रसाद के कब्जे में थी। लगभग 10 साल केस चलने के बाद CNT एक्ट की धारा 71(A) के तहत यह ज़मीन आदिवासी परिवार को पुनः लौटा दी गई। लेकिन अब बीरसी उरांव — जो गैर-आदिवासी से विवाह कर चुकी हैं — के माध्यम से उसी ज़मीन पर पुनः गैर-आदिवासी कब्जा कराने की कोशिश की जा रही है।

 

 

बिरसा सेना के अध्यक्ष दिनकर कच्छप ने साफ शब्दों में कहा कि जब सरकार और प्रशासन आदिवासियों की ज़मीन नहीं बचा पाते, तब बिरसा सेना मैदान में उतरती है।

 

 

जमशेदपुर में हजारों एकड़ आदिवासी ज़मीन गैर-आदिवासियों को कब्जा कराई गई है और न तो पांचवीं अनुसूची, न समता जजमेंट और न ही संविधान के अनुच्छेद 244(1)(2) का पालन हो रहा है।

 

आखिर कब रुकेगा आदिवासी ज़मीन का दोहन?

यह घटना झारखंड में आदिवासी ज़मीन की रक्षा को लेकर प्रशासन की गंभीरता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। जब CNT/SPT एक्ट और पांचवीं अनुसूची के बावजूद आदिवासी ज़मीनों को गैर-आदिवासियों के हाथों में सौंपा जा रहा है, तब आदिवासी समाज का आक्रोश स्वाभाविक है।

 

 

इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी अधिकार, पारंपरिक संपत्ति, प्रशासनिक निष्क्रियता और जातीय जटिलताओं के बीच संघर्ष को उजागर कर दिया है। यह केवल एक ज़मीन का मामला नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा की लड़ाई है।

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